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हरियाणा के युवक ने दिखाई किसानों को नई राह, पराली प्रबंधन से कर रहे लाखों की कमाई, युवाओं को दे रहे रोजगार

सर्दियों का मौसम शुरू होते ही पराली जलाने की घटनाएं हर साल आम हो जाती हैं जिससे वायु प्रदूषण की समस्या और भी बढ़ जाती है। इस समस्या से निपटने के लिए सरकार ने कई योजनाएं बनाई हैं जिनमें किसानों को पराली जलाने से रोकने के लिए प्रोत्साहन राशि भी दी जाती है।

 
Times Haryana, चंडीगढ़: करनाल के युवा शेखर राणा ने विदेश जाकर बसने के सपने को त्यागते हुए अपने गांव में ही पर्यावरण के प्रति अपनी जिम्मेदारी निभाने का फैसला किया। वर्ष 2021 में उन्होंने फसल अवशेष प्रबंधन की दिशा में कदम बढ़ाया और एक बेलर मशीन खरीदी। आज शेखर लगभग 60 युवाओं को रोजगार देकर न केवल पर्यावरण को बचाने में मदद कर रहे हैं बल्कि हर साल लाखों रुपये कमा रहे हैं। शेखर ने पराली से जुड़े प्रबंधन को एक सफल कारोबार में बदल दिया है। वह अपने खेतों में पराली के गट्ठे बनाकर इन्हें पानीपत स्थित इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन लिमिटेड (IOCL) रिफाइनरी तक पहुंचाते हैं जिससे उन्हें हर साल अच्छा मुनाफा हो रहा है। इस सफलता के पीछे उनकी दूरदर्शिता और मेहनत है जिसने उन्हें गांव में ही रहकर बड़ा व्यवसाय खड़ा करने का अवसर दिया।

पराली प्रबंधन से करोड़ों का बाजार

सर्दियों का मौसम शुरू होते ही पराली जलाने की घटनाएं हर साल आम हो जाती हैं जिससे वायु प्रदूषण की समस्या और भी बढ़ जाती है। इस समस्या से निपटने के लिए सरकार ने कई योजनाएं बनाई हैं जिनमें किसानों को पराली जलाने से रोकने के लिए प्रोत्साहन राशि भी दी जाती है। हालांकि इसके बावजूद पराली जलाने के कई मामले सामने आते हैं जिससे प्रदूषण के स्तर में कोई खास कमी नहीं आ पाती।

शेखर जैसे युवा किसानों ने पराली को जलाने के बजाय उसका सही प्रबंधन करने का तरीका ढूंढा है जिससे उन्हें आर्थिक लाभ भी हो रहा है। शेखर ने पहले साल सिर्फ एक बेलर मशीन से शुरुआत की थी लेकिन धीरे-धीरे उन्होंने अपनी योजनाओं को और बढ़ावा दिया। अब उनके पास तीन बेलर मशीनें हैं जो पूरे धान सीजन में लगातार काम करती हैं। शेखर पराली के गट्ठे बनाकर उन्हें स्टॉक करते हैं और बाद में पानीपत रिफाइनरी में पहुंचाते हैं।

गांव के युवाओं के लिए रोजगार के अवसर

शेखर न केवल अपने लिए एक सफल व्यवसाय चला रहे हैं बल्कि उन्होंने गांव के कई अन्य युवाओं के लिए भी रोजगार के नए रास्ते खोल दिए हैं। आज उनकी टीम में करीब 60 युवक काम कर रहे हैं जो उनके साथ मिलकर पराली के गट्ठे बनाते हैं और उनका परिवहन करते हैं। इस प्रक्रिया में शेखर ने युवाओं को खेती से जुड़े नए रोजगार के अवसर प्रदान किए हैं।

इस तरह के प्रयास न केवल पर्यावरण के संरक्षण में सहायक हैं बल्कि इससे ग्रामीण इलाकों में रोजगार के नए अवसर भी पैदा हो रहे हैं। शेखर का मानना है कि अगर इस प्रकार का मॉडल अन्य गांवों में भी लागू किया जाए तो पराली जलाने की समस्या से काफी हद तक निजात पाई जा सकती है और किसान इस काम से अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं।

शेखर की सफलता की कुंजी

शेखर राणा की सफलता का मुख्य कारण उनकी मेहनत और सोचने का अलग तरीका है। उन्होंने देखा कि पराली को जलाने से नुकसान है जबकि इसका सही उपयोग करके लाभ कमाया जा सकता है। शेखर ने अपनी मेहनत और सूझबूझ से इस व्यवसाय को खड़ा किया है। वह सरकार की योजनाओं और आधुनिक मशीनों का सही उपयोग कर रहे हैं। उनका यह मॉडल न केवल किसानों के लिए फायदेमंद साबित हो रहा है बल्कि पर्यावरण संरक्षण में भी सहायक है।

पराली जलाने से निजात के उपाय

पराली जलाने से होने वाले नुकसान को कम करने के लिए सरकार और वैज्ञानिक कई उपाय कर रहे हैं। किसानों को पराली प्रबंधन के लिए कई प्रकार की मशीनरी और सब्सिडी प्रदान की जा रही है। इसके बावजूद कई किसान जागरूक नहीं होते और पराली को जलाने का ही विकल्प चुनते हैं।

शेखर राणा का उदाहरण यह बताता है कि अगर सही तरीके से पराली का प्रबंधन किया जाए तो इससे अच्छा मुनाफा कमाया जा सकता है। सरकार द्वारा दी जा रही सुविधाओं का अगर सही उपयोग किया जाए तो किसान अपनी आमदनी में वृद्धि कर सकते हैं और पर्यावरण को भी सुरक्षित रख सकते हैं।

पराली के गट्ठों से रोजगार के नए अवसर

शेखर के द्वारा पराली के गट्ठे बनाकर रिफाइनरी तक पहुंचाने का काम एक नया व्यवसाय मॉडल बन चुका है। इसके साथ ही वह अपने खेतों में भी इन गट्ठों का स्टॉक बनाते हैं जिससे उन्हें हर सीजन में लाभ होता है। यह व्यवसाय केवल व्यक्तिगत लाभ तक सीमित नहीं है बल्कि इसके जरिए उन्होंने कई अन्य युवाओं को भी रोजगार प्रदान किया है। शेखर का मानना है कि भविष्य में इस काम को और विस्तार दिया जा सकता है जिससे न केवल पर्यावरण को बचाने में मदद मिलेगी बल्कि इससे ग्रामीण क्षेत्रों में भी विकास के नए रास्ते खुलेंगे।